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शिक्षा में समरसता चाहिए या समानता?

Publish: 27 June 2023, 12:25 am IST | Views: Page View 101

शिक्षा मंत्री, शिक्षा विभाग के अफसर, सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते? जबकि वे अपने विभाग व संस्थान की भूरी-भूरी प्रशंसा करते नहीं थकते.

निजीकरण के दौर में सरकारी कर्मचारी, व्यापारी और अच्छे खासे पैसों वाले अभिभावकों में भी निजी स्कूलों की मनमानी को लेकर गुस्सा साफ देखने को मिलता है. शहरों में पालकों के विभिन्न संगठनों द्वारा विरोध दर्ज कराते हुए भी देखा गया है. इसके बावजूद भी महंगाई, बढ़ती फीस, मंहगे स्टेशनरी सामान, ड्रेस आदि में लूट कभी बंद नहीं हुआ. सरकारी तंत्र की उदासीनता को लेकर पालकों में हमेशा नाराजगी रही है.

काफी हाय-तौबा मचाने के बाद, जैसे-तैसे हो- हल्ला करके वो अपने बच्चों को प्राईवेट स्कूलों में पढ़ा ही लेते हैं. प्राइवेट स्कूलों में चाहे जो हो जाए, तमाम दिक्कतों के बावजूद भी वो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते. प्राइवेट स्कूल, कॉलेज, इंस्टीट्यूट, कोचिंग सेंटर वाले माफियाओं ने देश की इस गंभीर समस्या की नब्ज को कायदे से पकड़ लिया है. अब इस मर्ज को समझना किसी भी सरकार के बस की बात नहीं.

विद्या दताति विनयं गया चुल्हे में, अब सारा माजरा बिजनेस व मुनाफा का है. शिक्षक सेल्समैन व वेटर जैसे हो गये हैं. एजुकेशन माफियाओं को मदद करते हैं, सरकारी अफसर, मंत्री, कार्पोरेटर, ठेकेदार आदि.
आरटीई, आरटीआई, जैसे कानूनी फंदों से कानून के रक्षक ही कुछ कमीशन की दक्षिणा लेकर बचा लेते हैं. जाल में फंसते हैं अच्छी शिक्षा का आस लगाए पालक. पर उन्हें वहां भी अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाता. मोटी फीस भरने वाले बच्चों को फिर कौन पढ़ाता है?

वही ढाक के तीन पात, 12वीं पास कोई बेरोजगार या जो अभी-अभी कॉलेज कर रहा है, जिसने अपनी ग्रेजुएशन भी अभी पूरी नहीं की है, वो उन हाईटेक बच्चों को पढ़ाने लगता है. जिसका खुद का कॉन्सेप्ट अभी क्लियर नहीं हो पा रहा है वो भारत के भविष्य के कॉन्सेप्ट को क्लियर करने की नाकाम कोशिश में लगा रहता है. कुछ कामयाब भी रहते हैं, पर ज्यादातर नहीं.

सोचिए, अगर सभी सरकारी स्कूलों को भी दूसरी संस्थानों की तरह निजी हाथों में दे दिया जाए तो क्या किसान, आदिवासी, दलित, गरीब या सामान्य लोग अपने बच्चों को पढ़ा पाएंगे? भारत पुनः अपने प्राचीन गौरवमयी स्वर्णिम काल में चला जाएगा. जहां हमारे पूर्वज आत्मनिर्भर हुआ करते थे, किन पर? अपने अगूंठे पर… सेठ साहूकारों, जमींदारों के पास.

शिक्षण संस्थानों का निजीकरण हुआ तो शिक्षा सिर्फ कुछ लोगों को ही मिल पाएगा, जैसे पहले हुआ करता था. बाकी लोग अंगूठा छाप रह जाएंगे. अभी सिर्फ धनाढ्यों को ही अच्छी शिक्षा मिल पा रही है, गरीब विद्यार्थियों के हक में एक टाइम का 2 रु. किलो वाला चावल है, इसी को उसकी नियति बना दिया गया है. कम्प्यूटर, लैपटॉप, पुस्तकालय, स्मार्ट एजुकेशन इन सबके बारे में वो कभी सपने में भी नहीं सोचता है. क्या उसका सपना कभी पैदा ही नहीं हो पाया? या सिस्टम ने कभी पैदा होने ही नहीं दिया?

कहीं ये लोग जान बूझकर प्राइवेट स्कूलों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी स्कूलों की जड़ों में मट्ठा डालने का काम तो नहीं कर रहे हैं?

सरकारी संस्थानों के कॉम्पिटिशन व टैंलेंट को वहीं कुचल दिया जा रहा है. एजुकेशन माफिया भ्रस्ट सिस्टम की मदद से भारत की बहुसंख्यक आबादी जो इलिट क्लास के चोचलों से मुकाबला नहीं कर सकते, उन्हें बड़ी चालाकी से रेस से बाहर कर रहे हैं.

सरकारी नौकरी, पैसा, लाभ, सुविधा लेने वाले जनप्रतिनिधि व अधिकारी ही सरकारी शिक्षण संस्थानों को तबाह-बर्बाद करने में लगे हैं. क्या ये देश को बर्बाद नहीं कर रहे हैं? क्या ये देश विरोधी काम नहीं है? देश की जनता व उनके संसाधनों को लूटना, क्या देश को लूटना नहीं है?

इनके बच्चे एसी रूम में शानदार कैरियर के सपने बून सकते हैं क्योंकि जिन्होंने इस देश की बहुसंख्यक आबादी के सपनों को कुचला है, वे लोग विदेशों में अपने बच्चों का भविष्य संवारने का सपना देख सकते हैं.

चुनौतियां, षड़यंत्र, कुटिलता, चालाकियां तमाम हैं लेकिन इसे पार करके ही मंजिल को पा जा सकता है.
“खोने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है, पाने को सारा जहान है.”

निजीकरण हो या सरकारी…. किसी भी हाल में शिक्षा हासिल करिए…. भले ही एक समय का खाना कम खाइए… मुझे याद है कि मीडिल स्कूल के दिनों में मैं महज 60 रूपए की फीस नहीं दे पाता था. क्लास कैप्टन होने के बाद भी मुझे वार्निंग सुनना पड़ता था. मुझे उस समय बहुत बुरा लगता था. बातें सुनी पर पढ़ना नहीं छोड़ा, जबकि अधिकतर सरकारी नौकरी वालों के बच्चे 8वीं, 10वीं या 12वीं फेल होकर पढ़ाई छोड़ दिए. मैं पढ़ा इसलिए आज इस पोस्ट को लिख पा रहा हूं. दूसरों की कहानी बनने के बजाए हम अपनी कहानी खुद लिखें… इतिहास भले ही हम लिख पाएं या न!

मेरे किसान, आदिवासी, गरीब मजदूर दोस्तों……..
शिक्षित बनिए…. शिक्षा ही हमारी मुक्ति का द्वार है.

कल के इंतजार में आज खाली बैठे रहने के बजाए, कल को बेहतर बनाने के लिए आज हमें संघर्ष करना होगा.

कल बाबा साहब की जयंती है, आज ही अग्रिम शुभकामनाएं स्कीकार करें.

शिक्षा के लिए संघर्ष कैसे किया जाता है, दुनिया ने उनसे सीखा. हम भी सीखें.

।।जय भीम, जय जोहार।।

(अमित कुमार चौहान)

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