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जाति उन्मूलन: डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचार एवं समाधान

Publish: 12 March 2025, 5:19 am IST | Views: Page View 149

भारत में जाति व्यवस्था एक प्राचीन सामाजिक संरचना रही है, जिसने समाज को कई वर्गों में विभाजित किया। यह व्यवस्था सामाजिक भेदभाव, असमानता और अन्याय को जन्म देती है। डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्होंने भारतीय संविधान का निर्माण किया, जाति व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने इसे सामाजिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा माना और इसके उन्मूलन के लिए कई उपाय सुझाए।

जाति व्यवस्था का प्रभाव

जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज में गहरी जड़ें जमा ली हैं, जिसके कारण निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:

डॉ. अंबेडकर के जाति उन्मूलन के उपाय

डॉ. अंबेडकर ने जाति को समाप्त करने के लिए कई ठोस उपाय बताए, जो आज भी प्रासंगिक हैं:

1. अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा

डॉ. अंबेडकर का मानना था कि जाति को समाप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका अंतरजातीय विवाह है। जब लोग अलग-अलग जातियों में विवाह करेंगे, तो जातिगत पहचान कमजोर हो जाएगी। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "एनिहिलेशन ऑफ कास्ट" (जाति का उन्मूलन) में लिखा:

"जाति को समाप्त करने का सबसे पहला और सबसे जरूरी तरीका अंतरजातीय विवाह है।"

2. शिक्षा सबसे बड़ा हथियार

डॉ. अंबेडकर का नारा था "शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो"। उनका मानना था कि शिक्षा ही जातिवाद की जड़ों को काट सकती है। उन्होंने निम्नलिखित सुझाव दिए:

3. धर्म सुधार और ब्राह्मणवाद का विरोध

अंबेडकर ने हिंदू धर्म की वर्ण व्यवस्था की आलोचना की और इसे जाति भेदभाव का मुख्य कारण माना। उन्होंने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया और लाखों अनुयायियों को भी प्रेरित किया। उनका मानना था कि जातिवाद से मुक्त होने के लिए धार्मिक संरचनाओं में सुधार आवश्यक है। उन्होंने कहा:

"मैं एक हिंदू के रूप में पैदा हुआ, लेकिन हिंदू के रूप में मरूँगा नहीं।"

4. कानूनी और संवैधानिक सुधार

डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान में जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान जोड़े:

5. आर्थिक समानता और रोजगार के अवसर

6. सामाजिक जागरूकता और संगठित संघर्ष

डॉ. अंबेडकर ने जाति के खिलाफ जागरूकता फैलाने और संगठित संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा:

"मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होनी चाहिए, न कि उसकी जाति से।"

निष्कर्ष

जाति को समाप्त करने के लिए शिक्षा, कानूनी सुधार, अंतरजातीय विवाह, आर्थिक अवसर और सामाजिक जागरूकता जैसे उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। डॉ. अंबेडकर ने जातिविहीन समाज की जो कल्पना की थी, उसे साकार करने के लिए हमें उनके विचारों को आत्मसात करना होगा।

जाति का उन्मूलन केवल नीतियों और कानूनों से संभव नहीं होगा, जब तक कि समाज खुद को बदलने के लिए तैयार न हो। हमें जातिवाद से मुक्त एक समतामूलक समाज बनाने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

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