Home
My Quiz

कृषि और सिंचाई: छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ (2025 परिदृश्य)

Publish: 05 September 2025, 4:40 am IST | Views: Page View 151

प्रस्तावना: छत्तीसगढ़ की कृषि अर्थव्यवस्था का महत्व

छत्तीसगढ़ राज्य, जिसे "भारत का धान का कटोरा" उपनाम से जाना जाता है, देश के कृषि परिदृश्य में एक pivotal स्थान रखता है। यहाँ की लगभग 80% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है. 2025 तक, राज्य की 70% से अधिक जनसंख्या कृषि और संबंधित गतिविधियों में अपनी आजीविका तलाशेगी, जो इस क्षेत्र के सतत विकास के लिए कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है. छत्तीसगढ़ भारत के कुल चावल उत्पादन में 9.6% योगदान देता है और देश में तीसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक राज्य है. राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 1.37 लाख वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 56.83 लाख हेक्टेयर भूमि शुद्ध बोया गया क्षेत्र है और 47.10 लाख हेक्टेयर सकल बोया गया क्षेत्र है.

छत्तीसगढ़ में सिंचाई: वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ

सिंचाई ढाँचे का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

छत्तीसगढ़ में सिंचाई की परंपरा 12वीं शताब्दी के कल्चुरी राजवंश तक पहुँचती है, जैसा कि कोटागढ़ के वल्लभसागर और रतनपुर के खड्गा जलाशय जैसे ऐतिहासिक जल संरक्षण संरचनाओं से प्रमाणित होता है. राज्य में वार्षिक औसत वर्षा 1300 मिमी होने के बावजूद, मानसून की परिवर्तनशीलता सिंचाई को एक महत्वपूर्ण आवश्यकता बनाती है.

वर्तमान सिंचाई क्षमता और अंतराल

राज्य गठन (1 नवंबर 2000) के समय, सरकारी स्रोतों से केवल 13.28 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता निर्मित की गई थी, जो सकल बोए गए क्षेत्र का मात्र 22.94% था. वर्तमान में, यह क्षमता बढ़कर 18.09 लाख हेक्टेयर (सकल बोए गए क्षेत्र का 31.83%) हो गई है, लेकिन यह राष्ट्रीय औसत से still कम है. राज्य के पास 41,700 MCM सतही जल और 13,678 MCM भूजल संसाधन उपलब्ध हैं, जिनमें से क्रमशः केवल 22% और 20% का ही अभी तक दोहन किया गया है.

तालिका 1: छत्तीसगढ़ में सिंचाई स्रोतों की वर्तमान स्थिति (2025)

सिंचाई स्रोतउपलब्ध संसाधनदोहन स्तरमुख्य चुनौतियाँ
सतही जल41,700 MCM22%वितरण अवसंरचना का अभाव
भूजल13,678 MCM20%असमान वितरण, संदूषण
वर्षा आधारित1300 mm औसत70% क्षेत्रमानसून की अनिश्चितता
जलाशय परियोजनाएँ416 योजनाएँ221,166 हेक्टेयर क्षमतापुरानी परियोजनाओं का जीर्णोद्धार

प्रमुख चुनौतियाँ

  1. वर्षा-आधारित कृषि पर निर्भरता: राज्य की 70% कृषि योग्य भूमि मानसून पर निर्भर है, जिससे अनियमित वर्षा patterns के कारण फसल चक्र में व्यवधान उत्पन्न होता है.
  2. सिंचाई अवसंरचना का अभावलघु और सीमांत किसानों के लिए सिंचाई सुविधाओं तक पहुँच की कमी है, जिससे उत्पादकता और आय सीमित होती है.
  3. पुरानी परियोजनाओं का ठप होनापीपरचेड़ी सिंचाई परियोजना जैसी कई योजनाएँ दशकों से (कुछ मामलों में 45 वर्ष तक) ठप पड़ी हैं, जिससे हज़ारों किसानों को लाभ नहीं मिल सका.
  4. जल संरक्षण चुनौतियाँमृदा अपरदन और जलभृत पुनर्भरण की कमी के कारण जल संरक्षण एक गंभीर चुनौती बना हुआ है.

सरकारी पहलें और नीतिगत हस्तक्षेप

नई सिंचाई परियोजनाओं का जीर्णोद्धार और निर्माण

छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल के वर्षों में सिंचाई अवसंरचना को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

वित्तीय प्रावधान और किसान कल्याण योजनाएँ

2025-26 के बजट में राज्य सरकार ने कृषि और सिंचाई क्षेत्र के लिए उल्लेखनीय वित्तीय प्रावधान किए हैं:

*तालिका 2: छत्तीसगढ़ सरकार की प्रमुख कृषि योजनाएँ (2025-26)*

योजना का नामबजट आवंटनलाभार्थीमुख्य उद्देश्य
कृषि उन्नति योजना10,000 करोड़ रु.25.49 लाख किसानMSP पर धान बिक्री समर्थन
भूमिहीन कृषक मजदूर योजना600 करोड़ रु.5.62 लाख मजदूरआर्थिक सहायता (10,000 रु./वर्ष)
नि:शुल्क कृषि विद्युत योजना3,500 करोड़ रु.सभी किसानसिंचाई लागत में कमी
एकीकृत बागवानी मिशन150 करोड़ रु.फल/सब्जी उत्पादकबागवानी विस्तार
परंपरागत कृषि विकास योजना20 करोड़ रु.जैविक किसानजैविक खेती को प्रोत्साहन

फसल विविधीकरण और जलवायु-स्मार्ट कृषि

धान-केंद्रित कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव

छत्तीसगढ़ के धान-केंद्रित कृषि मॉडल ने राज्य को पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति संवेदनशील बना दिया है। टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट के शोध के अनुसार, छत्तीसगढ़ भारत के कुल चावल-संबंधित मीथेन उत्सर्जन में 9% योगदान देता है. अध्ययन दर्शाता है कि धान के under 10% कम क्षेत्र में खेती करने से राज्य के मीथेन उत्सर्जन में 340 गीगाग्राम से 306 गीगाग्राम की कमी आ सकती है, जबकि 25% कमी से उत्सर्जन 255 गीगाग्राम तक कम हो सकता है—भारत के कुल उत्सर्जन में 3% की कमी के समतुल्य.

जलवायु-स्मारट फसलों की ओर संक्रमण

राज्य सरकार ने फसल विविधीकरण को प्रोत्साहन देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं:

जलवायु resilience और स्थायी कृषि practices

जलवायु जोखिम और आवश्यकता

छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय औसत से 20% अधिक जलवायु जोखिम का सामना करता है, जिससे जलवायु-स्मार्ट कृषि practices की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है. राज्य में अनियमित वर्षासूखा और असामयिक बारिश की घटनाएँ कृषि उत्पादन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं.

स्थायी कृषि के लिए innovative दृष्टिकोण

  1. एकीकृत जलाशय प्रबंधन: राज्य सरकार ने 200 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान के साथ एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम शुरू किया है.
  2. जैविक खेतीपरंपरागत कृषि विकास योजना के under 20 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ जैविक खेती को प्रोत्साहन.
  3. कृषि-वानिकी: राज्य के विस्तृत वन आवरण का लाभ उठाते हुए कृषि-वानिकी को बढ़ावा देना, जिससे मृदा उर्वरता में सुधार, कार्बन पृथक्करण और आय के नए स्रोत विकसित किए जा सकें.
  4. समेकित कीट प्रबंधन (IPM)प्राकृतिक कीट नियंत्रण विधियों को अपनाना, जिसमें अंत:फसलफेरोमोन जाल और जैविक कीटनाशक शामिल हैं.

तकनीकी innovation और डिजिटल परिवर्तन

precision कृषि और डिजिटल समाधान

छत्तीसगढ़ में कृषि के डिजिटल परिवर्तन की significant संभावनाएँ हैं:

क्षमता निर्माण और ज्ञान प्रसार

छत्तीसगढ़ सिंचाई विकास परियोजना के under जल उपयोगकर्ता संघों (WUAs) को मजबूत करना और किसानों तथा विभागीय कर्मचारियों के लिए गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना शामिल है. इसके अतिरिक्त, कृषि extension services का डिजिटलीकरण किसानों तक timely और relevant जानकारी पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

निष्कर्ष: भविष्य की दिशा और opportunities

छत्तीसगढ़ की कृषि 2025 में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ पारंपरिक चुनौतियों और आधुनिक opportunities का unique समन्वय देखने को मिल रहा है। राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था के सतत विकास के लिए निम्न बिंदु महत्वपूर्ण होंगे:

  1. सिंचाई अवसंरचना का त्वरित विस्तार: नई परियोजनाओं के निर्माण और पुरानी परियोजनाओं के जीर्णोद्धार through 700 करोड़ रुपये के आवंटन का कार्यान्वयन.
  2. फसल विविधीकरण को बढ़ावा: धान-केंद्रित कृषि से हटकर दलहनतिलहनमोटे अनाज और बागवानी फसलों की ओर बढ़ना.
  3. जलवायु-स्मारट तकनीकों का अपनाना: जल संरक्षणकार्बन farming और regenerative कृषि practices को बढ़ावा देना.
  4. मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करणकृषि-प्रसंस्करण इकाइयों और फूड पार्कों के विकास through FPOs को मजबूत करना.
  5. डिजिटल परिवर्तनप्रौद्योगिकी-संचालित कृषि के माध्यम से छोटे और सीमांत किसानों को सशक्त बनाना.

छत्तीसगढ़ सरकार की कृषि-उन्मुख नीतियों और योजनाओं के कार्यान्वयन से, राज्य न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है बल्कि किसानों की आय में significant वृद्धि भी achieve कर सकता है। 2025 तक, कृषि का modernización और जलवायु resilience राज्य के कृषि परिदृश्य की defining विशेषताएँ होंगी, जो छत्तीसगढ़ को सतत कृषि और ग्रामीण समृद्धि के एक national मॉडल के रूप में स्थापित कर सकती हैं।

Categories: Chhattisgarh