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हिन्दी में सटीक शब्द

Publish: 27 June 2023, 1:03 am IST | Views: Page View 144

अच्छी भाषा के लिए सटीक शब्दों का चयन बहुत आवश्यक है | यदि वक्ता या लेखक ऐसा ना कर सके तो या तो भाषा अशुद्ध हो जाती है, या उसकी ठीक बात श्रोता या पाठक तक नहीं पहुंच पाती |

उदाहरण

प्रायः लोग कहते हैं, “ मैं निश्चय रूप से कुछ नहीं कह सकता |” ध्यान देने योग्य है कि ‘ निश्चय’ संज्ञा है, जब की यहां ‘ रूप’ संज्ञा के पहले विशेषण आना चाहिए | मैं निश्चित अर्थात इस वाक्य में ‘ निश्चय’ के स्थान पर ‘ निश्चित’ रूप’ वाला वाक्य व्याकरण की दृष्टि से गलत है |

हिंदी भाषा में बहुत से ऐसे शब्द हैं जिसमें साधारण रीती से कोई भेद नहीं जान पड़ता, किंतु उनमें अर्थगत अवश्य है | अतः ऐसे शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करते समय सावधान रहना चाहिए | विद्यार्थियों की सुविधा के लिए यहां कुछ नमूने दिए जाते हैं :-

तट- तीर, पुलिन, सैकत

समुंद्र नदी या तालाब के पास की जमीन तट,
पानी से लगी जमीन तीर,
किनारे की तर जमीन पुलिन,
नदी के किनारे की बलुई जमीन सैकत कहलाती है |

प्रेम स्नेह प्रणय भक्ति श्रद्धा

समान आयु वालों में जो प्रीति होती है वहां प्रेम,

बड़ों की छोटो पर जो प्रीति होती है वह स्नेह,

और छोटो की जो प्रीति होती है वह भक्ति कहलाती है |
दाम्पत्य प्रीटी प्रणय और सद्धिषय में निष्ठा श्रद्धा कहलाती है |

पूजा अर्चना

श्रद्धाजनों के निकट भक्ति पूर्ण अवनती स्वीकार करना पूजा और देव मूर्ति को धूप, दीप, चंदन, पुष्पादि से सत्कार करना अर्चना कहलाती है | पूजा मानसिक और ग्राहक किंतु अर्चना केवल ब्राहा किया जाता है

अज्ञान, मूर्ख

जिसे कुछ ज्ञान न हो अज्ञ , और जो जड बुध्दि हो वह मुर्ख है।

अलौकिक, असाधरण, अस्वाभाविक

जो लोक मे ससार मे दुर्लभ हो वह अलौकिक है, जिसमे साधारण से विशेषता हो तो असाधारण और जो मनुष्य की प्रक़्रति के प्रतिकुल हो वह अस्वाभाविक है । अलौकिक का अस्वाभाविक होना सम्भव है, किंतु अस्वाभाविक का अलौकिक होना सम्भव नही है ।

अमुल्य, दुर्मूल्य, बहुमूल्य

जिस वस्तु का कोई मूल्य निधारण न किया जा सके वह अमूल्य,
जिस वस्तु का मूल्य उचित रुप से अत्यंत अधिक हो दुर्मूल्य और जिस वस्तु का मूल्य उचित किंतु बहुत हो बहुमूल्य है। विद्या अमूल्य, अकाल पडने पर अनाज दुर्मूल्य और हीरा बहुमूल्य है ।

अस्त्र, शस्त्र

जो किसी यंत्र द्वारा चलाया जाय वह अस्त्र
और जो पास-पास खडे होकर हाथ से चलाया जाये वह शस्त्र है।
तोप,बन्दु,अस्त्र है; लाठी और तलवार शस्त्र है।

अंहकार, अभिमान, दर्प, गर्व, गौरव, दम्‍भ, मान,

अपने को उचित से अधिक समझना अंहकार,
प्रतिष्ठा मे अपने को बडा और दूसरो को छोटा समझना अभिमान,
किसी नियम की परवाह न करना दर्प,
रुप, यौवन, कुल, विद्या, और धन के कारण अभिमान करना गर्व,
अपनी महता का यथार्थ ज्ञान गौरव,
किसी अयोग्य व्यक्ति का ब्रहाम्डम्बर दम्भ,
और अपने पूज्य समझना मान है।

आचार- व्यवहार

साधारण बर्ताव को आचार, और
किसी विशेष व्यक्ति के प्रति होने वाले बर्ताव को व्यवहार कहते है ।

आधि-व्याधि

मानसिक पीडा को आधि और शारीरिक पीडा को व्याधि कहते है।

आशंका, शंका, भय, आतंक, त्रास,

भविष्य मे होने वाले अमंगल की संभावना से मन मे जो क्लेश जनक भाव उत्पन्न होता है, वह आशंका ,और
इस प्रकार की अमंगल सुचना के भाव को शंका कहते है,
भय से मन को संकोच सुचित होता है
भय से ज्ञात, अज्ञात या सन्दिग्ध विषय को त्रास कहते है
भय के कारण जो शरीर मे चंचलता उत्पन्न हो उसे आतंक कहते है

उत्साह, उद्योग, आयास, प्रयास, यंत्र, चेष्टा,

उत्साह होने पर काम करने की इच्छा होती है और उसे पूरा करने के लिये मनुष्य उद्योग करता है । इस प्रकार की इच्छा को आयास बलवती रखता है। तब कार्य समपन्न करने का प्रयास होता है । यत्न से कार्य प्रारम्भ और चेष्ठा से कार्य पूर्ण किया जाता है।

कष्ट, क्लेश, दुःख, वेदना, व्यथा, यातना, यंत्रणा,

जब मन और शरीर दोनो को समान रुप से असुविधा जान पडे तब कष्ट होता है । केवल शारीरिक कष्ट को क्लेश कहते है। दुःख मानसिक अवस्था से सम्बन्ध रखता है। वेदना एक प्रकार की स्वतंत्र अनुभूति है। व्यथा आघात से उतपन्न होती है। वेदना की आपेक्षा व्यथा अधिक बलवती होती है । तीव्र व्यथा का नाम यातना है। दुःख का भार जान पड्ने पर यंत्रणा होती है।

बन्धु, सुह्र्द, मित्र, सखा,

जो वियोग न सह सके वह बन्धु, जो प्रेमी सदा सहमत रहे वह सुह्र्द, जिनकी क्रिया समान न हो वह मित्र, जिनके प्राण एक हो वे सखा होते है।

भ्रम, प्रमाद,

सावधान न रहने से जो चूक हो जाय वह भ्रम है; मूर्खता से अथवा जानबूझ कर परवाह न करने से जो चूक हो जाय वह प्रमाद है।

मन, चित्त, बुध्दि,

संकल्प- विकल्प करने वाला मन, बातो की स्मरण, विस्मरण करने वाला चित्त, कर्त्तत्य का निश्च्य करने वाली बुध्दि है।

ऋषि, मुनि,


धर्म और तत्व पर विचार करने वाले मुनि, वेद की व्याख्या करने वाले ऋषि कहलाते है।

व्यायाम, श्रम, आयास, परिश्रम,

अंग संचालन का नाम व्यायाम, शरीर की शक्ति जगाकर कार्य करना, श्रम, मन की शक्ति लगाकर काम करना आयास और शरीर तथा मन दोनो से कार्य करना परिश्रम कहलाता है।

स्पर्धा, ईर्ष्‍या,द्वेष, हिंसा,

उन्नति मे दूसरो से बढ जाने की इच्छा स्‍पर्धा, दूसरो की सफलता देखकर जलना ईर्ष्‍या, कारण वश दूसरो से शत्रुता या घ्रिणा द्वेष और किसी अनिष्ट करने की ईच्छा हिंसा कहलाती है।

संकोच, लज्जा ,ग्लानि, ब्रीडा,

किसी कार्य करने मे टाल-मटोल करना संकोच, प्रकट होने के भय से बुरे काम मे प्रविती होना लज्जा, कोई बुराई करने पर लज्जावश जो पश्‍चाताप होता है वह ग्लानि और लोगो के सामने काम प्रकट करने मे जो बाधा डालती है उसे ब्रीडा कहते है।

संतोष, तृप्ति, शांत,

जो पास है उसी को बहुत कुछ मान लेना संतोष और आकांछा की निवृत्ति को तृप्ति कहते है। तृप्ति क्ष‍ णिक और शांति स्थायी है तृप्ति थोडे आयास से प्राप्त होती है, किंतु शांति, साधना का फल है। इन्द्रियाँ तृप्ति होती है; मन शांत होता है।

निगलना-हड्पना,

निगलना का अर्थ है, गले के नीचे उतारना। लीलना, ” हड्पना” का अर्थ है बेईमानी से ले लेना या कब्जा कर लेना या कब्जा कर लेना । यो, कोई चीज या पैसा लेकर देने का नाम न लेने पर भी लक्षणा से निगलना का प्रयोग करते है।

दाता-दायक,

इन दोना का अर्थ है ‘देने वाला’ । कि न्तु पहले का प्रयोग व्यक्ति (मानव, ईशवर) के लिये होता है तो दूसरे का “वस्तु” आदि के लिये। सामंतीकाल मे राजा को अन्नदाता कहते रहे है। प्रसिध्द पंक्ति है। ” हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दिजीये। दूसरी ओर यह दावा बडी लाभदायक सिध्द होगी।

ठीस-सही

‘ठीक’ उचित या वाजिब के लिये प्रयुक्त होता है, किंतु ‘सही’ गलत का उलटा है। ‘सवाल गलत है या ठीक ‘ की तुलना मे ‘सवाल गलत है या सही’ अधिक अच्छा प्रयोग है।

त्रुटिहास,

किसी काम मे कोई त्रुटि रह जाय वह त्रुटि है; बने बनाये काम का कोई अंग बिगड जाय वह ह्रास है।

सेवा, सुश्रूषा, परिचर्या,

बडो की परिचर्या सेवा है, रोगी या दुःखी की परिचर्या शुश्रूषा है। परिचर्या सेवा के लिये साधारण शब्द है।

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