सकारात्मक सोच कार्य कैसे करता है
Publish: 27 June 2023, 3:43 am IST | Views: 108
सकारात्मक सोच कैसे काम करती है
दोस्तों आपने सुना होगा की हमें हमेशा सकारात्मक होना चाहिये, हमें हमेशा पॉजिटिव ही सोचना चाहिये | यह सकारात्मक कैसे काम करती है, यह किस प्रकार लोगो को उनके उद्देश्य तक पहुचती है ?
आज हम इसी सम्बन्ध में चर्चा करेंगे | चलिए सबसे पहले जानते है की ये सकारात्मक है क्या ?
सकारात्मक सोच कार्य कैसे करता है :-
दोस्तों यदि हमारे शरीर के किसी हिस्से में आ जाए तो हमें बहुत पीड़ा होती है यह तो केवल शारीरिक कष्ट है, यदि हमारे विचार भी सही न हो तो यह शारीरिक कष्ट से भी जायदा कष्टप्रद होता है, विचारो का सही होना सुखद अनुभूति करता है | क्या आप जानते है की जब हमें लज्जा आती है, तब हमारे शरीर के साथ क्या होता है | लज्जा का बाहरी परिदृश्य क तो सुखद लगता है ; परन्तु भीतरी परिदृश्य दुःखद एवं घुटन से युक्त है | लज्जा की स्तिथि में व्यक्ति के शरीर का टूटा अंग | ग्रंथि ठीक से काम नहीं करता जो उसे भीतरी कष्ट देता है तथा अनेक प्रकार के रोगों को भी जन्म देता है |
आप कहेंगे इस लज्जा से सकारात्मक सोच का क्या सम्बन्ध है – मै बताता हूँ | जो व्यक्ति, दया, शर्म, घृणा, क्रोध, जुगुत्स, आदि से युक्त होता है उसकी अंत ग्रंथि या ठीक से कार्य नहीं करती फलस्वरूप चिडचिडापन, शर्म, आदि भाव, जागृत होते है | और यही अनेक प्रकार के मानसिक बिमारियों को जन्म देता है | ध्यान रहे मानसिक बिमारी शारीरिक बिमारी से जायदा खतरनाक होता है | जब बात करते है सकरात्मंकता की – जब हम सकारात्मक सोचते है , जब हम पॉजिटिव रहते है, तब हमारे शरीर की भीतरी ग्रंथियां सही तरीके से कार्य करती है इस प्रकार शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है, फलस्वरूप व्यक्ति दोनों ही दृष्टिकोण से स्वस्थ रहता है |
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति शीघ्र ही अपने महान उद्देश्य को हासिल कर लेता है | क्योकि उसके पास कार्य करने के लिए योजनाबध्द तरीका होता है और कठिनाई में भी उसको रास्ता दीखता रहता है | फलस्वरूप वह तटस्थ होकर लगन एवं आस्था के साथ कार्य करता है, वह जितना परिभ्रम करता है प्रातः लोग उसे दुगुना सकारात्मक शक्ति प्रदान करते रहते है | फलास्वरूप व्यक्ति शीघ्र ही अपनी मंजील को पा लेता है |
सकारात्मकता को एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते है | एक नेगटिव सोच वाला व्यक्ति कहता है, कि ये पेड़ कितना दुष्ट है कि – इसे पत्थर मारने के बाद ही यह फल देता है, अर्थात जब तक इसके साथ हिंसा न किया जाए, यह फल नहीं देता | जबकि एक सकारात्मक व्यक्ति सोचता है कि, यह पेड़ कितना महान है जो पत्थर का चोट लगने के बाद भी यह हमारे भूख को मिटाने के लिए फल देता है | अर्थात यह दर्द सहन करने के पश्चात् भी कल्याणकारी कार्य करता है |
इन दोनों प्रकार के सोच से शरीर ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है आइए जानते है |
वह व्यक्ति जो पेड़ में बुराई देखता है , सर्वप्रथम तो उसका दृष्टिकोण ही दूषित है | वह प्रत्येक वस्तु , पदार्थ में बुराई अथवा अपयश ही देखेगा क्योकि उसकी ऐसी प्रवित्ति हो चली है | जिस प्रकार कछुए की प्रविती है – धीमे चलना, जिस प्रकार सूर्य की प्रविती है ताप देना, जिस प्रकार बर्फ की प्रविती है शीतलता ठीक उसी प्रकार ऐसे व्यक्तियों की प्रविती भी नकारात्मक होती है |
अब नकारात्मक सोचने वाला व्यक्ति प्रथमतः तो असंतुस्ट होगा | असंतुष्टि से उसको मानसिक कष्ट होगा | मानसिक कष्ट से क्रोध, आवेग एवं चिडचिडेपन का लक्षण दिखाई देगा | जिसमे कारण व्यक्ति दिन भर परेशान रहेगा | साथ ही वह अपने परिवार के साथ भी लड़ाई कर बैठेगा | कही उसकी अपनी पत्नी में कुछ खामी निकली तो दो चार हाँथ उसे जमा देगा | इस प्रकार उसका सम्पूर्ण जीवन कलह के बीच ही कटेगा उसका सारा जीवन असंतुलित एवं अशांत रहेगा |
जबकि पेड़ के बारे में सकारात्मक सोचने वाला कि –(इसको चोट लगने से भी यह मीठा फल प्रदान करता है) उसके भीतर दया परोपकार आदि भाव जागृत होगा जो धीरे-धीरे उसके भीतर के अन्य सोए हुए गुणों को जागृत कर देगा, और उस व्यक्ति को महान से महानतम बना देगा |
यही सकारात्मक और नकारात्मक सोच में अंतर है |
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